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Tuesday, February 7, 2012

हम थे वो थे , पहली मुलाकात थी,
न गर्मी थी, न बरसात थी.

फूलों की महक थी, कोयल की चहक थी.
बूंदों की सौगात थी.

ऐसा लगता था जैसे जिन्दगी को जिन्दगी की आस थी,
वो ख्यालों की तस्वीर हकीकत मे मेरे साथ थी,

न जाने क्या बात थी, मैं सोचता रहा,
इस तरह तो पहले कभी नहीं सोचा था,
मगर आज न जाने क्या बात थी,

भीतर मेरी तन्हाई और बाहर काली रात थी
अजनबी से हम थे मगर पहचानी सी मुलाकात थी,

1 comment:

  1. भीतर मेरी तन्हाई और बाहर काली रात थी

    jab wo sath the to phir tanhaae kaise ..
    shayad aapne kuch unchi baat likhi hai , jo mere samaz se pare hai ..
    but offcourse its ultimate..........

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