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Tuesday, December 21, 2010

प्यार का जहर जिसने पीया वो मरा न जिया.....










प्यार का जहर जिसने पीया वो मरा न जिया
जलता रहा उम्रभर जैसे बिना तेल के दिया।

करना था वो कर चुका।
फिर न जीवन भर कुछ किया।

प्यार का जहर जिसने पीया........................

सहता रहा जख्म दर जख्म सीने पर,
खुद ही एक एक कर उन्हे सिया।

प्यार का जहर जिसने पीया................

सहता रहा गम जीवन भर
फिर एक एक अश्क उन्हे पीया।

प्यार का जहर जिसने पीया वो मरा न जिया।
जलता रहा उम्रभर जैसे बिना तेल के दिया..





3 comments:

  1. डॉ साहब ये उदगार अनुभवजन्य है या किसी दूसरे की हलातबयां.
    वैसे इस नश्तर में कुछ बात है

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  2. वो पीते रहे जहर और जीते रहे
    प्यार ना करना ये सबसे कहते रहे
    जख्म को सी डाला कुछ इस तरह
    के जख्म भी भीनी हसी हसते रहे

    ये मालिक बता दे एक तो दर ऐसा
    जिस जिगर को तूने इश्क बक्शा नही
    मोहब्बत को ही मिला जलने का हुनर
    जो सारी दुनिया को रौशनी देती रही
    और उस पर अब ये आलम है कि
    लोग जलते है बिना जले इश्क की आग में
    और दूर से नाजारा करते है
    प्यार का जहर पी के जीने वालो का
    इन्तजार करते है कि कोई तो पुकारे लैला को
    और पत्थर से लहूलुहान करे सर मजनू का


    प्यार तो दुआ है खुदा की
    जो मिलती है हर किसी को
    जलती है शमा अकेले रातभर
    तभी रौशनी मिलती है हर किसी को

    प्यार करने वालो के अश्क ही
    मोहब्बत का दरिया बनाते है
    जिसमे डूब कर ही बनती है जिन्दगी
    वरना बाकी तो बेनाम खत्म हो जाते है

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  3. kiya comment hai comment kiya hai ye dstane mohabbat hai

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