इस अंधियारी राह में
मै अपना नाम ढूँढता हूँ
आज के इस जहाँ में
राम रहीम नानक यीशू के
पैगाम ढूँढता हूँ
इंसान से बने हैवान की आँखों में
मै आज मासूमियत के ख्वाब ढूँढता हूँ
मौत के किनारे वक्त की रेत पर
बना कर घरौंदा मै
जिन्दगी की लहर ढूँढता हूँ
चिलचिलाती धूप में भी
बारिश की फुहार ढूँढता हूँ
आतंक के साये में रह कर
मै अमन की राह ढूँढता हूँ
वक्त के धुधले पडे आइने में
मै अपनी पहचान ढूँढता हूँ
अच्छी लगी ये कविता। आप के ब्लोग का नाम पढ़ कर यहां आयी थी सोचा था आप पास्ट लाइफ़ थैरेपी के बारे में लिखेगें,या तो मैं ढ़ूढ़ नहीं पायी या आप शायद भविष्य में उस पर लिखेगें। आप का ई मेल आई डी भी नहीं दिखा आप के प्रोफ़ाइल में इस लिए यहां लिख कर जा रही हूँ । मनोविज्ञान के क्षेत्र से जुड़ी हूँ इस लिए जिज्ञासा होना स्वाभाविक था
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