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Friday, July 9, 2010

देश ढूँढता है

इस अंधियारी राह में

मै अपना नाम ढूँढता हूँ

आज के इस जहाँ में

राम रहीम नानक यीशू के

पैगाम ढूँढता हूँ

इंसान से बने हैवान की आँखों में

मै आज मासूमियत के ख्वाब ढूँढता हूँ

मौत के किनारे वक्त की रेत पर

बना कर घरौंदा मै

जिन्दगी की लहर ढूँढता हूँ

चिलचिलाती धूप में भी

बारिश की फुहार ढूँढता हूँ

आतंक के साये में रह कर

मै अमन की राह ढूँढता हूँ

वक्त के धुधले पडे आइने में 

मै अपनी पहचान ढूँढता हूँ

1 comment:

  1. अच्छी लगी ये कविता। आप के ब्लोग का नाम पढ़ कर यहां आयी थी सोचा था आप पास्ट लाइफ़ थैरेपी के बारे में लिखेगें,या तो मैं ढ़ूढ़ नहीं पायी या आप शायद भविष्य में उस पर लिखेगें। आप का ई मेल आई डी भी नहीं दिखा आप के प्रोफ़ाइल में इस लिए यहां लिख कर जा रही हूँ । मनोविज्ञान के क्षेत्र से जुड़ी हूँ इस लिए जिज्ञासा होना स्वाभाविक था

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